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▪अमहिया की सत्ता का अंत ▪रीवा की सियासत में नई हवा

मनीष गौतम रीवा 

 ▪बजा डंका गिरीश का*

▪अमहिया की सत्ता का अंत

▪रीवा की सियासत में नई हवा


▪पार्षदी टिकट अब व्हाइट

     हाउस से बंटेगी



रीवा।  मध्यप्रदेश की सियासत में आज का पल निर्णायक था। गिरीश गौतम की जिन्दगी का एक लम्हा उन्हें विधान सभा अध्यक्ष बनाकर माननीय कर दिया। इसी के साथ रीवा की सियासत में एक नये अध्याय का श्रीगणेश हुआ। अमहिया की राजनीति का पर्दा आने वाले समय तक के लिए ,हमेशा के लिए गिर गया। सत्ता का केन्द्र अब अमहिया से हटकर चौरसिया धर्मकांटा के पास पहुंच गया। यानी व्हाइट हाउस। यह बदलाव आगामी मेयर चुनाव के लिए भी बड़ा अहम साबित होगा।


गिरीश गौतम के विधान सभा अध्यक्ष बनने से बहुतों के चेहरे कमल की तरह खिल गए। क्यों कि ,गिरीश गौतम ने अपने लिए सत्ता का नया गंणतंत्र गढ़ लिए हैं। वे विधायक खुश हुए ,जिन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिह को साफ साफ कह दिया था कि, यदि सत्ता की बागडोर इस बार नहीं बदली गई, तो हम सभी इस्तीफा दे देंगे। सात विधायकों की ताकत ने संगठन को,हाईकमान को और शिवराज को अपनी पसंद बदलने के लिए विवश किया। यह बदलाव पिछली दफा मंत्री मंडल के गठन के समय होना था। लेकिन राजेन्द्र शुक्ला के दबाव के चलते,न केदार शुक्ला मंत्री बन पाए और न ही गिरीश गौतम।



▪अमहिया का जलवा धूमिल

नये सियासी बदलाव से अमहिया की राजनीति का जलवा फीका पड़ गया। पत्रकारिता की धारा भी अब बदल जाएगी। गिरीश गौतम भले बीजेपी में है,लेकिन हैं तो कामरेड ही। उनके मन में पिछले पन्द्रह साल से सियासत का जो गुबार मन के अंदर है, वो कौन सी करवट लेता है, यह तो बीजेपी भी नहीं जानती। लेकिन एक बात है कि, अमहिया की सियासत का पर्दा, अब अगले तीन साल के लिए गिर गया। कलेक्ट्रेड में कलेक्टर को गिरीश गौतम कहे थे,कभी देवतालाब भी घूम आया करिये। अब कलेक्टर और कमीश्नर रीवा में दिखेंगे लेकिन, उनका ध्यान ज्यादा से ज्यादा देवतालाब विधान सभा पर रहेगा। ऐसा भी हो सकता है कि, उनका तबादला हो जाए। जैसा कि श्रीनिवास तिवारी अपने मन माफिक पुलिस अफसर से लेकर कलेक्टर,कमिश्नर रखते थे।


▪मेयर की राजनीति पर असर

अभी तक 45 वार्डो में पार्षदी का चुनाव लड़ने के लिए टिकट की आश लगाकर लोग बैठे थे कि ,मंत्री जी ही टिकट देंगे। लेकिन मंत्री जी,अब भैया बन गए। उनके कई समर्थक पाला बदल लेंगे। सिंधी खेमा अब कहां जाता है? विंध्य में काफी समय से ब्राम्हण राजनीति का सूरज डूब गया था, वो गिरीश गौतम के आने से फिर से उदय हो सकता है। पार्षदी की टिकट अब अमहिया से नहीं चौरसिया धर्मकाटा के व्हाइट हाउस से बंटेगी। 

राजेन्द्र शुक्ला के लिए आज का दिन बहुत अच्छा नहीं रहा। अब उन्हें अपनी राजनीति की दिशा बदलनी होगी। ताकि उनकी राजनीति की सांसे चलती रहे। राजनीति हमेशा संभावनाओं पर चलती है। यह उसी दिन तय हो गया था कि, राजेन्द्र शुक्ला मंत्री नहीं बनाए जा रहे हैं,जिस दिन अभय मिश्रा को शराब का ठेका मिला था।अब राजेन्द्र शुक्ला को अपना सलाहकार बदल देना चाहिए। इसलिए कि अच्छे दिन अब अपनी दिशा बदल दिये है। जिन्हें जीतना था, वो जीत गए। सत्ताई सियासत में चुनौतियांँ अब नए रंग में खड़ी हैं

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