मनीष गौतम रीवा
ग्रहण और सोमवती अमावस्या साथ-साथ
सोमवती अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह साल में 2 से 3 बार पड़ती है. साल ग्रहण और सोमवती अमावस्या साथ-साथ अंतिम सोमवती अमावस्या इस बार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि 14 दिसंबर यानि कि सोमवार के दिन पड़ रही है. यह दिन भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन व्यक्ति अपने मृतक रिश्तेदारों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र नदी में डुबकी लगाकर प्रार्थना करते हैं और उनके नाम का दान करते हैं. आइए जानते हैं इस दिन का धार्मिक महत्व...
सोमवती अमावस्या का व्रत विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस दिन मौन व्रत करने का विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है. इस दिन विवाहित स्त्रियां पीपल के पेड़ की दूध, जल, पुष्प, अक्षत और चंदन से पूजा करती हैं. इसके बाद 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा कर प्रार्थना करती हैं कि उनके पति की लम्बी उम्र हो.
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान करने का विशेष महत्व
जब अमावस्या सोमवार के दिन पड़ता है उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है. सोमवार के दिन पड़ने वाली सोमवती अमावस्या साल में 2 से 3 बार पड़ती है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य हर रूप से सुखी-समृद्ध होगा. साथ ही वह पूर्ण रूप से स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त भी होगा. वहीं, इस दिन स्नान करने पर पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
एक गरीब ब्राह्मण परिवार था. उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी. वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था. वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी. किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें और वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए. कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है.
तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है. साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है.
यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही. अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती. एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं. इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है.
कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं. तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह तैयार हो गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के प्राण शरीर में वापस आ गया. धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा. इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है.
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