मनीष गौतम की कलम से
मानव शरीर पारस से भी मूल्यवान है
एक महात्मा के पास एक गृहस्थ जाया करता था। महात्मा बड़े विरक्त थे।एक दिन उस गृहस्थ को बहुत उदास देख कर महात्मा ने पूछा- तुम्हें किस बात का दुःख है ? उसने कहा सट्टे में तीन लाख का घाटा हो गया है। अब जो लेनदार भी आते हैं यम दूत मालूम पड़ते हैं उन्हें देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।
महात्मा ने कहा कितना देने से दुःख दूर हो सकता है, तीन लाख से दूर हो जाएगा क्या.?
भक्त- इस से तो घाटा ही उतरेगा।
महात्मा-10 लाख से हो जाएगा ?
भक्त - हाँ जी, कुछ और होता तो अच्छा रहता।
महात्मा- एक करोड़ ?
भक्त- एक करोड़ से मेरा मन बढ़ गया है।
एक दिन के लिए अगर पारस मणि मिल जाए तो बढ़िया रहेगा।
महात्मा -अच्छा ठीक है, एक महीने के लिए पारस देतें हैं।
महात्मा ने भक्त को पारस दे दिया। भक्त ने गहने बेच कर लोहा खरीदना शुरू कर दिया,
एक महीने तक लोहा खरीदता रहा। लालच के कारण सोना बनाने की सुध भूल गया, पारस वापिस अपने घर चला गया।
भक्त फिर महात्मा के पास गया और रोने लगा कि आप ने तो कृपा करके मुझे पारस दिया था लेकिन मैं ही नालायक रहा और उसका सदुपयोग न कर सका। महाराज के चरण पकड़ लिए, महाराज एक घंटे के लिए पारस दे दीजिए। महात्मा ने कहा मूर्ख ! तूने पारस लेते समय ही लोहे को सोना क्यों नहीं बना लिया।
सारा समय लोहा इकट्ठा करने में लगा रहा, अब पारस नहीं मिलेगा।
गोविन्द ने हम सब को मनुष्य शरीर रुपी पारस दिया है। पारस तो धरा रह जाएगा , लोहा ही लोहा इकट्ठा हो जाएगा।
अतः अब भी समय है हम पारस रुपी शरीर का स्वांस-स्वांस गोविन्द चिन्तन एवं भगवद स्मरण में लगा दें।
गोविन्द तो सदा उपकार ही करते हैं।
ठाकुर ने मनुष्य जन्म दिया, उत्तम धर्म दिया, उत्तम देश दिया, उत्तम सत्संग दिया। इसे पाकर भी उद्धार नहीं किया तो इस से बढ़ कर हमारे लिए लज्जा और दुःख की बात और क्या होगी ?
जो छू ले तेरे चरणो की धूल सांवरे
वो मिट्टी से सोना बन जाये
इक नज़र जिस पर पड़ जाये
वो कंकर भी कोहिनूर कहलाये
खाली दामन भर देता है
हर मुराद पूरी कर देता है
जब देने पर आता है सांवरा तो
लिखी तकदीर भी बदल देता है।
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