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आस्था का महापर्व छठ क्यों मनाते हैं छठ महापर्व

मनीष गौतम रीवा 


 आस्था का महापर्व छठ क्यों मनाते हैं छठ महापर्व



भारत की विविध संस्कृति का एक अहम अंग यहां के पर्व हैं. भारत में ऐसे कई छठ पर्व हैं जो बेहद कठिन माने जाते हैं और इन्हीं पर्वों में से एक है छठ पर्व. छठ को सिर्फ पर्व नहीं महापर्व कहा जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जली व्रत रखा जाता है. आइए आज के इस अंक में जानें छठ के बारे में कुछ विशेष बातें और छठ व्रत कथा.



क्या है छठ


छठ पर्व और षष्ठी का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन है और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है. इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया.
छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है.


छठ व्रत कथा


मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है और इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वस्थ, सफल और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्र की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.
Read: माता सीता ने भी रखा था छठ व्रत
छठ व्रत की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में एक कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है. इसके अनुसार प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया. यज्ञ के फलस्वरूप महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, किंतु वह शिशु मृत था. इस समाचार से पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया. तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. आकाश से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा और उसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं.' इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर का स्पर्श किया, जिससे वह बालक जीवित हो उठा. इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी.


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