मनीष गौतम रीवा
पितृपक्ष और भ्रांतियां वेदाचार्य प्रेम नारायण त्रिपाठी
पितृपक्ष शुरू होते ही लोगों के मन में पूजा पाठ एवं कार्य पद्धति को लेकर लोगों के अनेक शंकाएं मन में उत्पन्न होती है जिसका समाधान आज हम बताने की कोशिश करेंगे
काशी में वेद विद्यालय में अध्यापक वेदाचार्य प्रेम नारायण त्रिपाठी जी ने बताया कि
1 भ्रांति -पितृपक्ष में कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
तथ्य- यह एक विशिष्ट अवसर है, जिसमें हमें अपने पितरों व बुजुर्गों का आदर एवम हिन्दु धर्म में वर्णित तर्पण एवम श्राद्ध आदि करना चाहिए। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि अन्य दैनिक कार्य भी न करें। जिस कार्य का जो शास्त्र अनुसार काल या मुहूर्त बताया गया हो, वो जरूर करें।
2 भ्रांति - पितृपक्ष उसके लिए है
जिसके पिता व माता नहीं हैं।
तथ्य- यह नित्य कर्म के अंतर्गत समाहित किया गया है। जिसके संकल्प में श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्तये इसकी कामना है। सभी को इस काल खण्ड में अपने पूर्वजों को स्मरण एवम उनके मृत तिथि को दानादि एवम तर्पण आदि अवश्य करनी चाहिए।
3 भ्रांति - गया श्राद्ध सम्पन्न होने के
बाद पितृपक्ष में तर्पणादि नहीं होगा।
तथ्य- ये विधि विरुद्ध है। आपको गया श्राद्ध के बाद भी तर्पणादि अवश्य करनी चाहिए।
4 भ्रांति - पितृपक्ष में आवश्यक नहीं
है कि हम तर्पणादि करें।
तथ्य- आपको अपनी धार्मिक ,पारम्परिक, सामाजिक तथा मानव जीवन की अभ्युन्नति के लिए जरूर इस पक्ष विशिष्ट में अवश्य तर्पणादि करनी चाहिए जिससे , आधिदैविक, आधिभौतिक एवम आध्यात्मिक ताप- त्रय से निवृति एवम अभीष्ट की सिद्धि हो सके। जब भी अनुकूल श्रम करने के बाद भी जीवन में सफलता बाधित दिखे तो अपने पितरों को जरूर याद कर तर्पणादि करें।
5 भ्रांति- वर्तमान वर्ष में पिता या
माता दिवंगत हो गए तो उसी वर्ष पड़ने वाले पितृपक्ष में तर्पणादि नहीं होगा।
तथ्य- उस वर्ष भी तर्पणादि। किया जाएगा परन्तु पिंडदान आदि कार्य नहीं होंगे।
6 भ्रांति- भैया करते हैं तर्पणादि तो हम क्यों करें।
तथ्य - यह कार्य प्रत्येक भाई के लिए है ,वे अवश्य करें। हाँ ,यदि साथ रहते हों तो श्राद्ध कर्म तिथि पर एक साथ ही करें।
7 भ्रांति- हमें संस्कृत पढ़ना नहीं आता कैसे करें।
तथ्य- आप समुह में या किसी के साथ या पुरोहित के द्वारा या अन्य सहारा के द्वारा कर सकते हैं। विषय परिस्थितियों में स्वयम पूर्व के तरफ देवताओं उत्तर के तरफ ऋषियों एवम दक्षिण में पितरों के नाम पर मन में ध्यान एवम नामोच्चारण द्वारा जलांजलि तर्पण कर सकते हैं।
8 भ्रांति- इस काल में कुछ नहीं करें तो क्या होगा।
तथ्य- मनुष्य होने के नाते आवश्यक है कि हम अपने मूल्य की रक्षा करें। हम बृद्ध एवम पितरों का आदर करना सीखें।
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