रीवा नगर निगम प्रशासन ने दिया घुमावदार जबाब कहा जानकारी हमसे सम्बंधित नही, मामले की हुई प्रथम अपील और अब राज्य सूचना आयोग की अग्रिम कार्यवाही
*(Rewa, MP) 48 घण्टे की आरटीआई का 120 घण्टे बाद आया भ्रामक जबाब (मामला जिले के रहतरा तालाब बस्ती विस्थापन मामले का जिसमे एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी की 48 घण्टे जीवन जीने के अधिकार सम्बन्धी आरटीआई पर रीवा नगर निगम प्रशासन ने दिया घुमावदार जबाब कहा जानकारी हमसे सम्बंधित नही, मामले की हुई प्रथम अपील और अब राज्य सूचना आयोग की अग्रिम कार्यवाहीपर सबकी नजर)*
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रीवा मप्र।
रीवा रतहरा तालाब बस्ती विस्थापन मामले में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा दिनांक 10 एवं 11 मई को इलेक्ट्रॉनिक एवं फिजिकल माध्यम से दायर 48 घण्टे की आरटीआई का जबाब 120 घण्टे से अधिक समय व्यतीत होने के बाद औपचारिक तौर पर मात्र दो पन्नो के साथ दिया गया है जो अधूरा है. रीवा नगर निगम कार्यालय से सचिन सिंह द्वारा एक्टिविस्ट द्विवेदी को दिनांक 15 मई को दोपहर बाद 3 बजे के आसपास फ़ोन पर कॉल करके बताया गया की आपकी जानकारी रेडी है आप इसे दिनांक 16 मई को दोपहर 12 एवं 1 बजे के बीच नगर निगम कार्यालय पहुंचकर ले लें.
इस पर आवेदक द्वारा जानकारी व्हाट्सएप के माध्यय से भी चाही गयी जिसे बाद में निगम बाबू द्वारा दो पन्नों में आवेदक के व्हाट्सएप्प में भेजी गई.
*कोई जानकारी नही मात्र पूरी की औपचारिकता*
बता दें की नगर निगम बाबू द्वारा आवेदक के व्हाट्सएप में जो दो पन्ने की जानकारी साझा की गयी है वह कोई जानकारी नही है बल्कि जानकारी न होने की सूचना मात्र है. अमूमन 48 घण्टे की आरटीआई जिंसमे सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 7(1) के तहत जीवन जीने का अधिकार सम्मिलित होता है ऐसी जानकारी 48 घण्टे के भीतर उपलब्ध कराई जाती है लेकिन यद्यपि कोई विशेष न तो जानकारी दी गयी बल्कि जानकारी न होने की सूचना मात्र थी जिसे आरटीआई के प्रावधानों के विरुद्ध 120 घण्टे के बाद उपलब्ध कराई गई जो वैसे भी नियम विरुद्ध थी.
*एपीआईओ और पीआईओ के बीच घूम रही फ़ाइल, कह रहे हमसे संबंधित नही*
ताजुब्ब की बात यह है की नगर निगम कार्यालय मात्र रीवा में एक ही है और सभी जोन उसी के अन्तर्गत आते हैं ऐसे में एक ही आफिस में कागज ढूंढने और आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप जानकारी उपलब्ध कराने में कोई समस्या नही होनी चाहिए थी. क्योंकि आरटीआई अधिनियम यही कहता है की जो जानकारी संधारित है उसे आवेदक को टाइम लिमिट में उपलब्ध कराई जानी चाहिए लेकिन 11 मई का आवेदक का आवेदन 13 मई को सहायक लोक सूचना अधिकारी जोन 4 द्वारा लोक सूचना अधिकारी नगर निगम को लिखकर मात्र यह कहा गया की यह जानकारी और संबंधित कार्यवाही की नस्ती उनसे संबंधित नही है अतः जानकारी नही दे सकते. फिर वही एपीआईओ जोन 4 के पत्र को आधार मानकर 14 मई की तिथि में लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदक शिवानन्द द्विवेदी को एड्रेस करके पत्र लिखा गया की आपने जो जानकारी चाही है वह जोन 4 के एपीआईओ द्वारा एक पन्ने में संलग्न है.
अब सवाल यह था की यह न तो कोई जानकारी थी और न ही रतहरा तालाब बस्ती व्यवस्थापन के विषय में चाही गयी जानकारी थी. तो फिर यह सब क्या था? जाहिर है यह मात्र एक औपचारिकता थी की किस प्रकार से आवेदक को घुमाया जाय और कैसे परेशान किया जाय वरना डीम्ड पीआईओ एवं नगर निगम कमिश्नर अर्पित वर्मा यदि चाहते तो जानकारी 48 घण्टे में अवश्य उपलब्ध कराई जा सकती थी.
*अब आगे क्या - मामले की हुई प्रथम अपील*
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी ने पूरे मामले की प्रथम अपील भी ईमेल के माध्यम से एक बार पुनः कर दी है और लॉकडाउन की स्थिति में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह से यह मार्गदर्शन भी चाहा है की एक बार पुनः अपील सम्बन्धी रुपये 50 की फीस पे करने के लिए कोई ऑनलाइन तरीका ढूंढा जाय क्योंकि अब जब रीवा जिले में भी कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है और रीवा भी ग्रीन जोन से रेड जोन की तरफ पहुँचता जा रहा है ऐसे में कोई भी रेसिडेंट्स अपनी जान को जोखिम में डालकर ऑफलाइन आवेदन के साथ फीस जमा करने के लिए कार्यालय में नही पहुंच सकता.
*अब गेंद मप्र सूचना आयोग के पाले में*
अब सवाल यह है की जब नगर निगम रीवा के लोक सूचना अधिकारी ने घुमावदार जबाब दे दिया है और जानकारी छुपाने का भरसक प्रयास किया है ऐसे में मप्र राज्य सूचना आयोग का अगला कदम क्या होगा? जाहिर है न 48 घण्टे की सूचना आयोग की नोटिस के बाद भी नगर निगम पीआईओ द्वारा समय सीमा में जबाब न दिया जाना एक तरफ जहां सूचना आयोग की अवमानना है वहीं आरटीआई के अधिनियम का उल्लंघन भी है. इसमे निश्चित तौर पर मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह मामले की गंभीरता को लेते हुए विस्थापित मजदूरों के मौलिक मानवाधिकार की दिशा में कड़ा कदम उठा सकते हैं. बता दें की अपने कार्यभार संभालने के बाद सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने निरंतर कड़े एक्शन लिए हैं जिसमे सूचना के अधिकार के उल्लंघन पर लोक सूचना अधिकारियों के ऊपर जबरदस्त तरीके से फाइन लगाई गई है और भोपाल सूचना भवन में व्यक्तिगत जबाब तलब हेतु पेशियां लगाई गई हैं. विशेषतौर पर मप्र के सूचना आयोग के इतिहास में यह पहली बार हुआ है की 48 घण्टे की जीवन जीने के अधिकार से जुड़े मामलों में सूचना आयुक्त ने सख्ती दिखाई भी और कई बेंचमार्क निर्णय दिए हैं.
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