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राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में कर्ज नहीं अनुदान देने की मांग*

*मध्य प्रदेश विद्युत मंडल अभियंता संघ*


   
*बिजली इंजीनियरों ने कहा केंद्र सरकार का पावर सेक्टर पैकेज निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए* :


 *राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में कर्ज नहीं अनुदान देने की मांग
ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित  पावर सेक्टर पैकेज को निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए राहत पॅकेज बताते हुए मांग की है कि  राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार कर्ज के बजाये  अनुदान दे तभी बिजली कम्पनियाँ इस संकट में कार्य कर सकेंगी |
  ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने आज कहा कि केंद्र सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को जो 90000 करोड़ रु का पॅकेज देने का एलान किया है उसमे साफ़ लिखा है कि यह धनराशि निजी बिजली उत्पादन घरों, निजी पारेषण कंपनियों  और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का बकाया अदा करने के लिए दी जा रही है और राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां इसका कोई और उपयोग नहीं कर सकेंगी | इससे स्पष्ट है कि यह रिलीफ पैकेज निजी घरानों के लिए है न कि राज्य की सरकारी बिजली कंपनियों के लिए | इतना ही नहीं तो राज्य की वितरण कम्पनियाँ इस धनराशि का उपयोग राज्य के सरकारी बिजली उत्पादन घरों से खरीदी गई बिजली का भुगतान करने हेतु भी नहीं कर सकती हैं जिनसे राज्यों को सबसे सस्ती बिजली मिलती है | 
उन्होंने कहा कि  निजी बिजली उत्पादन घरों  और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का कुल बकाया 94000 करोड़ रु है और केंद्र सरकार ने 90000 करोड़ रु दिए है तो और स्पष्ट हो जाता है कि राज्यों की बिजली कंपनियों के लिए इस पॅकेज में कुछ नहीं है | केंद्र सरकार यह धनराशि राज्य सरकारों द्वारा  गारंटी देने पर कर्ज के रूप में दे रही है और यह समझना मुश्किल नहीं है कि लॉकडाउन  के चलते भारी नुक्सान उठा रही राज्यों की बिजली वितरण कम्पनियाँ इस कर्ज को कैसे अदा करेंगी | अतः यदि सचमुच केंद्र सरकार मदद करना चाहती है तो कर्ज के बजाय उसे अनुदान देना चाहिए | 
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि केंद्र व् राज्य के सरकारी विभागों पर बिजली वितरण कंपनियों का 70000 करोड़ रु से अधिक का राजस्व बकाया है | अकेले उत्तर प्रदेश में ही सरकारी विभागों का बकाया 13000 करोड़ रु से अधिक है | यदि सरकार अपना बकाया ही दे दे तो राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को केंद्र सरकार से कोई कर्ज लेने की जरूरत नहीं रहेगी | उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में निजी घरानों की चिंता के साथ सरकारों को अपने बिजली राजस्व के बकाये का भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिए अन्यथा 90000 करोड़ रु के इस कर्ज के बोझ तले  दबी वितरण कम्पनियाँ कैसे और कबतक  अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर सकेंगी | 
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि घोषित पॅकेज में कहा गया है कि इस संकट के दौरान केंद्रीय उपक्रमों की बिजली उत्पादन कम्पनियाँ राज्यों की वितरण कंपनियों  को न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज को नहीं लेंगी  जबकि  इस मामले में निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को  न खरीदी गई बिजली के फिक्स चार्ज लेने का अधिकार दिया गया है | इस प्रकार एक ही माले में दो मापदण्ड से स्पष्ट हो जाता है कि  यह घोषणा निजी घरानों के लिए मदद का तोहफा है जबकि  राज्यों की सरकारी बिजली कंपनियों पर कर्ज और बिना बिजली खरीदे निजी घरानों को फिक्स चार्ज देने का भार  उठाना होगा | 
  ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार से अपील की है कि कोविड -19 महामारी के संकट में राज्यों की बिजली कंपनियों पर डाले गए कर्ज को अनुदान में बदले जिससे आने वाली खरीफ की फसल और देश की 70 % ग्रामीण जनता के हित में बिजली वितरण कम्पनियाँ सुचारु रूप से कार्य कर सकें | 
 
महासचिव
इंजी. बीकेएस परिहार
मध्य प्रदेश विद्युत मंडल अभियंता संघ


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