*(Rewa, MP) नगर निगम के हाँथ पैर फूले, अब गढ़ रहे झूँठ का पुलिंदा (मामला 09 मई की रतहरा तालाब बस्ती के अतिक्रमण हटाओ अभियान का जहां एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी की 48 घण्टे जीवन जीने के अधिकार के तहत आरटीआई का जबाब देने में अलग अलग पत्र जारी करके कर रहे गुमराह, आयोग ने कहा सख्त कार्यवाही होगी, ट्विटर पर सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने फिर लिया संज्ञान, शनिवार को प्रथम अपील लेने अधिकारी अनुपस्थित)*
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रीवा शहर में रतहरा तालाब बस्ती में नगर निगम द्वारा की गयी अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर कार्यवाही पर जबाब देने में निगम प्रशासन के हाँथ पैर फूल रहे हैं और नगर निगम के अधिकारी अपनी जानकारी में झूँठ के पुलिंदे गढ़ने में मशगूल हैं. पिछले तीन चार दिनों के घटनाक्रम में नगर निगम ने तीन पत्र जारी किये हैं जिंसमे अलग अलग जबाब देकर वह खुद ही अपने मायाजाल में फंसते जा रहे हैं.
ज्ञातत्व है की आरटीआई में जबाब बदलना और भ्रामक जबाब देना गुमराह करने की श्रेणी में आता है जिसका अपना जुर्माना और कार्यवाही तय होती है.
*तीन पत्र जारी कर दिया तीन तरह का जबाब*
एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी के दिनांक 10 एवं 11 मई को सूचना के अधिकार के तहत लगाए गए 48 घण्टे जीवन जीने के अधिकार की धारा 7(1) के आवेदन को लेकर आरटीआई में नगर निगम के सहायक लोक सूचना अधिकारी पी एन शुक्ला और लोक सूचना अधिकारी ने तीन पत्र जारी किये हैं जिसमे दिनाँक 13 मई को पत्र क्रमांक 73 एवं 14 मई को पत्र क्रमांक 84 जारी कर कहा की जानकारी जोन क्रमांक 4 से संबंधित नही है जिज़ पर काफी बबाल मचा और काफी मीडियावाजी भी हुई. वहीं अगले दिन 15 मई को एक अन्य पत्र क्रमांक 2266 जारी कर लोक सूचना अधिकारी द्वारा कहा गया की जानकारी अभी बनाई जा रही है और पूर्व का पत्र सहायक लोक सूचना अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी नही हुआ था. अब सवाल यह है की पत्र सहायक लोक सूचना अधिकारी अथवा लोक सूचना अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी नही हुआ तो फिर कौन ऐसे झूठे और भ्रामक पत्र जारी कर रहे हैं जिससे न केवल आवेदक गुमराह हो रहे हैं बल्कि पूरे जिले और प्रदेश की जनता जो मामले में नजर गड़ाए हुए है उसे भी गुमराह किया जा रहा है.
*कोरोना लॉकडाउन का दिया हवाला कहा 33 प्रतिशत ही कर्मचारी काम पर*
जब मामला प्रिंट मीडिया में एकबार फिर हाईलाइट हुआ और सूचना आयोग की कार्यवाही की तलवार लटकती समझ में आई तो रीवा नगर निगम प्रशासन ने सूचना के अधिकार में ही अपने अपने पैंतरे बदलने शुरू कर दिए जबकि इन्हें पता होना चाहिए की 48 घण्टे की आरटीआई का जबाब समयसीमा पर दी जाती है और उसमे रोज पत्र जारी करके बदलाव नही किया जाता. ऐसे में जाहिर है नगर निगम प्रशासन स्वयं अपने ही बनाये जाल में बुरी तरह से फंसता जा रहा है.
*शनिवार को लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी अनुपस्थित*
जब बात आरटीआई आवेदन के प्रथम अपील की आई और सामाजिक कार्यकर्ता ने दिनांक 16 मई को नगर निगम अपीलीय आवेदन भेजकर पाउती लेनी चाही तो पता चला की नगर निगम रीवा में कोई सक्षम व्यक्ति उपलब्ध नही था जो अपील का आवेदन लेकर उसकी पाउती देता. इस विषय में खुले हुए कक्ष और अनुपस्थिति अधिकारियों और कर्मचारियों का वीडियो बनाकर भी सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह को ट्वीट कर द्विवेदी द्वारा अवगत कर दिया गया है और कार्यवाही की माग की गयी है.
*डीम्ड पीआईओ अर्पित वर्मा की अपील होगी संभागायुक्त रीवा अशोक भार्गव को*
अब सवाल यह है की जब सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने अपने 12 मई के 13 पन्ने के आदेश में नगर निगमायुक्त अर्पित वर्मा को पूरे मामले का डीम्ड पीआईओ ही बना दिया है ऐसे में अर्पित वर्मा के विरुद्ध अपील कहां की जाएगी. क्योंकि निश्चित ही पूरे नगर निगम में नगर निगमायुक्त अर्पित वर्मा से बढ़कर कोई दूसरा अधिकारी तो नही है ऐसे में जाहिर है डीम्ड पीआईओ के विरुद्ध अपील संभागायुक्त कार्यालय रीवा में ही की जाएगी क्योंकि संभागायुक्त वर्तमान परिवेश में प्रशासक होने के नाते इस समय पूरे मामले के प्रथम अपीलीय अधिकारी हैं.
*अर्पित वर्मा एक अक्षम अधिकारी, इन्हें तत्काल हटाया जाय - शिवानन्द द्विवेदी
इस बीच आरटीआई एक्टिविस्ट और रतहरा तालाब बस्ती विस्थापन मामले पर आरटीआई दायर कर 48 घण्टे के भीतर जीवन जीने के अधिकार धारा 7(1) के तहत लोकहित में जानकारी चाहने वाले आवेदक शिवानन्द द्विवेदी का कहना है की नगर निगम प्रशासन बाहरी दबाब में काम कर रहा है और राजनीतिक दबाब के कारण जबाब देने से कतरा रहा है. लेकिन कानून तो कानून है. आरटीआई कानून आम जनता का कानून है और कानून से बढ़कर कोई नही होता. द्विवेदी का कहना है की जो भी जानकारी उनके द्वारा चाही गयी है सब जायज है और जनता को इस लॉकडाउन की स्थिति में यह सब जानने का अधिकार है. यह कोई सामान्य धारा 6(1) के तहत आरटीआई आवेदन होता तो विलंब समझा जा सकता था लेकिन 7(1) धारा के तहत 48 घंटे की आरिटीआई का जबाब देने से नगर निगम प्रशासन अपने आपको बचा नही सकता. इस बीच एक्टिविस्ट द्विवेदी ने कहा की जहां चिन्हित विस्थापित लोग 168 थे उन्हें नगर निगम द्वारा कम करके 68 बताया जा रहा है जो झूँठ है और अब अर्पित वर्मा पूरे मामले में स्वयं भी मुख्य कार्यवाहक होने के बाद भी जानकारी देने से बच रहे हैं और भ्रामक और गुमराह करने वाली स्थिति पैदा कर रहे हैं जो आरटीआई कानून के विरुद्ध तो है ही लॉकडाउन नेशनल इमरजेंसी की स्थिति में भी लोक सेवा अधिनियम और कदाचरण की श्रेणी में आता है जिसकी आवेदक स्वयं भी सामान्य प्रशासन विभाग और कार्मिक विभाग में शिकायत करेंगे. एक्टिविस्ट द्विवेदी ने अर्पित वर्मा को तत्काल प्रभाव से हटाये जाने के लिए मप्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ट्वीट भी किया है.
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