मनीष गौतम
रीवा युवा साहित्यकार एवं जर्नलिस्ट
इंसान तेरी क्या हस्ती है कदम थमे हैं इंसान के
भगवान की कुदरत के नहीं मिट सकते हैं इंसान सभी
प्रकृति की कोई नेमत नहीं
सूरज भी उगता है
चांद तारे भी खिलते हैं
पीले पत्ते़ भी झड़ते हैं
नव कोंपल और फूल खिलते हैं
जानवर बेख़ौफ घूमते हैं
पंछी उन्मुक्त चहकते हैं
हवा भी मस्त चल रही
नदियां भी खुल कर बह रहीं
मुक्त हैं हम इंसानी कचरे से
मानो ये इंसान से कह रहीं
हर शय मानो कह रही है
इंसान तेरी क्या हस्ती है
तेरी तो सांसें भी हमसे
तेरी जिंदगी आज मौत से सस्ती ह
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