आस्था की शक्ति मनीष गौतम युवा साहित्यकार
कुदरत-कोरोना
ऊंची ऊंची उड़ाने भरते रहे,
प्रकृति से मज़ाक करते रहे,
कहीं दरिया, कहीं पहाड़ और कहीं जंगल,
अपने लालच के लिए सब तबाह करते रहे।
काट के पेड़, ऊंचे ऊंचे महल बनाते रहे,
अपने आराम को वातावरण मिटाते रहे,
गाड़ियों, कारख़ानों से प्रदूषण फैलाते रहे,
पेट भरने के लिए पशु-पक्षी खाते रहे।
नदियां, झीलें भी नहीं छोड़ी इंसानों ने,
हर तरह का कचरा इन में बहाते रहे,
इस मोड़ पे ले आए हम ज़िंदगी को,
खुदा का भी मज़ाक बनाते रहे,
आख़िर को कुदरत ने उठाई हल्की सी नज़र,
बस ज़रा सा इक झटका देकर,
हिला दी दुनिया इक कोरोना जैसी दे के झलक,
इन्सान को अपनी ताक़त का अंदाज़ा दे कर
कितने इन्सान कह चुके हैं अलविदा जग को,
कितने ही ज़िन्दगी से जंग लड़ रहे हैं,
कितने बेबस हो गये हैं सारे ही,
दुबक के घरों में, अब रब को याद कर रहे हैं।
जाने कैसे निशान छोड़ जाएगा कोरोना,
पर सबक़ सब के लिए दे के यह जाएगा,
अगर खिलवाड़ रखा जारी हमने कुदरत से,
वजूद इन्सान का जहान से मिट जाएगा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें