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क्यों आती है संसार में महामारी क्यों आया करोना गौर करें स्वत: ही एहसास हो जाएगा

*ऐसा शास्त्र वचन है*  कि मनुष्यों के कुल  भार से 20 गुना से अधिक  भार  *पशुओं_जलचर_नभचर_सांप* आदि का होना चाहिए तभी मनुष्य पृथ्वी पर रह सकता है। 
यह अनुपात असंतुलित होते ही प्रकृति आपदा द्वारा मनुष्य का विनाश रच देती है। इसलिए पशु हिंसा पृथ्वी को बहुत ही गहरा आघात पहुंचाती है। 
पृथ्वी को इसीलिए गौ कहा गया है, क्योंकि गौ पर अत्याचार सीधा पृथ्वी पर अत्याचार है। गाय की हत्या कितनी घातक होती है यह बताने की जरूरत नहीं है। हत्या किए जा रहे पशु की आह से सारी समष्टि चेतना चीत्कार करती है, शास्त्रों में साफ साफ आया है कि यह आह ही भूकम्प तूफान महामारी बनकर अपना बदला लेती है। 
सारे देवी देवताओं के वाहन भी पशु हैं और पशुओं के प्रति अपनत्व सिखाते हैं।
सर्पों का इस संसार की रचना  में बहुत ही गहरा योगदान होता है, इन्हीं विषधर नागों से पृथ्वी स्थिर है, महादेव यूँ ही सर्पों को गले में लिपटाकर नहीं रखते, विष्णु जी यूँ ही शेषनाग की छाया में नहीं रहते, इसलिए पुराण पृथ्वी को शेषनाग के फण पर टिका बताता है। 
नाग धर्म को स्थिर बनाए रहता है, इसलिए सारे देवमन्दिरों की रक्षा का भार भी नागों पर ही होता है। पद्मनाभस्वामी मन्दिर का खजाना भी इन्हीं की छत्रछाया में है। नाग की हत्या जन्म जन्मांतर तक  वर्ष तक भी पीछा नहीं छोड़ती, जिसके नागदोष होता है उसे असहनीय कष्ट होता है।
मनुष्य के जीवन को इसीलिए ज्योतिष "कुण्डली" कहती है जो सर्प का कठोर बंधन होती है। इसलिए सर्प को पूजने का हमेशा हिंदुओं ने यत्न किया है। जबकि चीन जैसा  देश सर्पों की हत्या कर उन्हें खा रहा था, सारा यूरोप गौमांस खा कर अपनी बर्बादी को निमंत्रण दे रहा था। सर्पहत्या, गौहत्या और पशुवध के वीभत्स पाप का घड़ा भरता है तो बिना आहट किए काल बनकर निगल जाता है। इससे स्पष्ट प्रमाण पृथ्वी नहीं दे सकती,  जागरूक बनिये। मांसाहार त्यागिये, मन में जीव जन्तुओं के प्रति करुणा रखिये।
नारायण मंगल करेंगे।
*आनंदम्*  🙏🏻


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