पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा (41) का कहना है कि भारत में कारोबारियों को टिके रहने के लिए काफी शांत रहने की जरूरत होती है। लेकिन, यहां जो विजेता है वह दुनिया में कहीं भी कामयाब हो सकता है। शर्मा ने एक इंटरव्यू में कारोबारियों की जिंदगी से जुड़े सवाल पर ये बात कही। उन्होंने कहा कि कैफे कॉफी-डे के फाउंडर वी जी सिद्धार्थ की आत्महत्या की घटना मेरे जैसे कारोबारियों के लिए पीड़ादायक है।
रॉक सॉन्ग याद कर अंग्रेजी सीखी: विजय शेखर शर्मा
उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे शर्मा ने ब्लूमबर्ग को दिए इंटरव्यू में शुरुआती जीवन और कारोबारी सफलता के बारे में बताया। उन्होंने कहा- मेरी पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल में हुई। मैं भाग्यशाली था कि 15 साल की उम्र में दिल्ली में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। मैंने रॉक सॉन्ग याद कर और हिंदी-इंग्लिश ट्रांसलेटेड किताबें पढ़कर अंग्रेजी सीखी।
शर्मा ने कहा- ग्रेजुएशन के बाद शुरुआती दिनों में इंटरनेट कारोबारी जेरी यांग और मार्क एंड्रेसन मेरे लिए आदर्श थे। साल 2000 में मैंने वन97 कम्युनिकेशंस शुरू की। उस वक्त टेलीकॉम ऑपरेटरों के जरिए यूजर को कंटेंट उपलब्ध करवाते थे। 2010 तक स्मार्टफोन डिस्ट्रीब्यूशन माध्यम बन गए। इसके जरिए हमने पेमेंट के विकल्प पर ध्यान देना शुरू किया और किस्मत हमारे हाथ में थी। 2014 में वॉलेट सुविधा की शुरुआत की। एक साल बाद ही आंट फाइनेंशियल ने हमारी कंपनी में निवेश किया। उसके बाद अलीबाबा और सॉफ्टबैंक से भी फंड मिला।
पेटीएम के फाउंडर ने कहा- देश के ज्यादातर इंटरनेट उद्यमियों की जड़ें छोटे कस्बों से जुड़ी हैं। वे कुछ अहम और सफल काम करना चाहते हैं। मेरे पिता स्कूल टीचर थे। मैं छोटे कारोबारियों को कंप्यूटर नेटवर्क सेटअप के लिए वीकेंड में कंसल्टेंसी देकर पैसे कमाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में मैं पूछता था कि सबसे अच्छे वेतन वाली नौकरी कौनसी है। किसी ने सीईओ का पद बताया। मैंने यह नहीं सोचा कि वह व्यक्ति व्यंग्य कर रहा है। बल्कि, मैंने अपनी कंपनी बनाने और सीईओ बनने का विचार किया था।
देश में इंटरनेट के विकास पर शर्मा ने कहा कि अब यह हमारी जेब में है। हम काफी आगे बढ़ चुके हैं। पिछले 20 साल भारत के लिए काफी अहम रहे। इस दौरान देश में ऐसे बेमिसाल बदलाव आए जो दुनिया के अन्य देशों यहां तक कि अमेरिका और चीन में भी नहीं देखे गए। भारत में काफी कम समय में ऑनलाइन यूजर की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ।
भारत में डिजिटल पेमेंट ट्रांसफॉर्मेशन चीन से कितना अलग है। इस सवाल पर शर्मा ने कहा- चीन में सिर्फ दो कंपनियां प्रमुख हैं। हमारे यहां उस तरह का एकाधिकार नहीं। यहां चार से पांच खिलाड़ी हैं। भारत ज्यादा प्रतिस्पर्धी बाजार है। हमारे पास ना तो बेस्ट टैलेंट है, ना ही इन्फ्रास्ट्रक्चर और जरूरत लायक पूंजी है। फंड जुटाने के लिए हमें विदेशी निवेशकों को समझाना पड़ता है। लेकिन, चीन और अमेरिका की कंपनियों को उनके बाजारों के बारे में बताने की जरूरत नहीं होती।
पुरानी पीढ़ी के इंटरनेट के दौर में शुरुआत की, आज युवा उद्यमियों में गिनती
क्या भारत बदल रहा है? इस सवाल पर पेटीएम के फाउंडर ने कहा- सस्ते मोबाइल डेटा की वजह से इंटरनेट देश के कोने-कोने तक पहुंच रहा है। इससे पेमेंट सर्विस से जुड़े स्टार्टअप बढ़ रहे हैं। हम अब तीसरी दुनिया के नहीं बल्कि ए-ग्रेड उद्यमी हैं। देश में बिजनेस शुरू कर इसे बाकी दुनिया में भी फैलाना संभव है। जब हमने शुरुआत की थी तब इंटरनेट का शुरूआती दौर था। इस बात से खुशी मिलती है कि आज मेरी गिनती ओयो के फाउंडर रितेश अग्रवाल और ओला के फाउंडर भाविश अग्रवाल जैसे युवा उद्यमियों में होती है।
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